गुजरी है करीब से कई बहारे , किसी की महक से ये वजूद महका ही नहीँ ,
न जाने कहाँ है कौन है ओ । जिसकी तलाश मे दर बदर मै भटकता हूँ ,
कही तो ये तलाश ख़त्म होगीं , इस सफ़र की ,जो मंजिलें कहीँ खो गयी है ,
कभी तो मिलेंगी इसी इंतज़ार मे , चिलमन गिराये बैठा हूँ ॥ मै तेरी तलाश मे , हाँ तेरी तलाश मे , हाँ तेरी तलाश मे ॥
(Written by: सुनील कुमार "सकल")
कहीं तो ये तलाश खत्म होगी.........
ReplyDeleteSuperb sir🤟👌👍🤙
That's what is Sunil Bhardwaj Sir😎😎😎😎